Wednesday, 7 November 2018

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नवरस


Most of the time, we hear that the goal of life is to attain happiness. But we often ignore all kinds of emotions we encounter on our way to attain happiness. Life is not just about happiness rather it is about emotions. Happiness is temporary but quest for happiness and various emotions encountered in the journey are permanent. Be it love, laughter, anger, empathy, disgust, anxiety, valor, wonder or calm. We, in Indian culture, call these as Navrasas. (9 essences)   

In this poem, I have tried to use UPAMA alankar (Simile figure of speech) to discover all these RASAS.

मैं अंत हूँ अनंत भी |
मैं क्रोध हूँ मैं प्रेम भी ||ध्रु||

भुजंग का मणि भी मैं
व्याल का गरल भी मैं |
पंक मैं, कमल भी मैं
विष भी मैं, पियूष भी मैं ||१||


द्रौपदी का स्वाभिमान
हूँ रघुपति सा धैर्यवान |
कर्ण की व्याकुलता 
हूँ सीता की शालीनता ||२||

दुर्योधन का उन्माद मैं,
कृष्ण का हूँ हास्य मैं |
मैं अंत हूँ अनंत भी |
मैं क्रोध हूँ मैं प्रेम भी ||३||

आनंद ही तो अंत नहीं
जिंदगी नवरस में हैं ||

Meanings:
१) भुजंग: साप, सर्प;
२) व्याल: साप, सर्प;
३) पंक: कीचड़;
४) पियूष: अमृत;
५) उन्माद: अहंकार

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